बचने की कोशिश करते हैं,
सेवा से कितना डरते हैं,
हरियाली रहती ना क़ायम,
खिले फूल निश्चित झरते हैं,
आसमान में उड़ने वाले,
पांव जमीं पर ही धरते हैं,
एक समय ठुकराए आकर,
जीवन भर जिस पे मरते हैं,
पछ्तावा रह जाता केवल,
आंखों में आसूं भरते हैं,
बुरे वक़्त में लाचारी वश,
हालातों से ख़ुद लड़ते हैं,
'गुंजन' राम भरोसे जीवन,
प्रभु पीड़ा सबकी हरते हैं,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
#प्रभु पीड़ा सबकी हरते हैं#