White मेरे सामने, उसने जुल्फों पर हाथ फेर लिया,
मानो बादलों ने जैसे आसमान घेर लिया,
नजरे टकराई, तो उसने शर्मा कर कहीं और देखा,
भीगते-भीगते बरसात ने मानो मुंह फेर लिया,
नाम पुकारने पर, पीछे मुड़ी तो बाल सारे चेहरे पर,
दिनदहाड़े आसमान को काले बादलों ने घेर लिया,
हम-उम्र थी, पुरानी किताब से ज्यादा हसीन थी,
आंखों से पढ़ कर, उसके पन्नों पर हाथ फेर दिया,
शीशे में देखकर सवार रही थी खुद को वो,
शीशे ने शर्मा के खुद को लाल कर दिया,
तुम गलत नहीं, गलत वक्त में पैदा हुए हो विक्रम !
कोई तुम्हें भाता नहीं या किसी को तुमने जुदा कर दिया...
-विक्रम
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©VIKRAM RAJAK