....तजुर्बा कोई कम तो नहीं
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ऐ समंदर! तू गुरूर ना कर अपनी गहराई पर इतना,
इन आंखों में डूब जाने का तजुर्बा कोई कम तो नहीं।
प्यार की खुशबूओं में महकते हुए तेरे ख़त काफ़ी,
जहां तुम तुम तो नहीं और जहां हम हम तो नहीं।
वक्त ने बहुत दूर किया मुझको मेरी परछाईं से,
तुम ग़र साथ हो तो जिंदगी में कोई ग़म तो नहीं।
दरमियान इन फासलों में नहीं लम्हों ने ख़ता की है,
लबों पर हंसी इतनी पर आंखें इतनी नम तो नहीं।
तेरी खामोशियां भी बोलतीं हैं मोहब्बत की जुबां,
अपनी धड़कन से पूछो मैं तेरा हमदम तो नहीं।
याद आता है अक्सर मुझको तेरी आंखों का नशा,
मेरी जन्नत है ये या कोई आब़-ए-ज़मज़म तो नहीं।
कैसे भूलेंगे उम्र भर हम वो तुम्हारा नूरानी चेहरा?
ज़ख़्म भर जाएंगे दिल के हाथ तेरे मरहम तो नहीं।
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-----राजेश कुमार
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-25/12/2024
©Rajesh Kumar
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