विराट अभेद्य शब्दवृक्ष को
भेद्य करने की चेष्टा में
मेरा स्वभाव शब्द हो गया
मैं स्तब्ध सा भेदभाव रहित
ना कोई भेद का अभाव
और ना भेद का कोई दुर्भाव
मेरे हावभाव के रिक्तता से
यदि भाव बढ़े है तो बढ़ने दो
मुझे शब्दों में उलझा रहने दो
©अदनासा-
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