White " प्राण स्वयं प्रकाशित " हम दूर हैं अंतर | हिंदी कविता

"White " प्राण स्वयं प्रकाशित " हम दूर हैं अंतर निरंतर बढता जा रहा हैं पर स्नेह एक दुसरे के प्रति चढता जा रहा हैं अब चिंताये सोच अविश्वास की खोज हीं नहीं हर इक पल सम्मान प्रेम वास्तविक विचार बढता जा रहा हैं आखे रंग रूप भौतिकता का जहर डुबता जा रहा हैं वासनाओ की तृप्ती खारा समंदर सुखता जा रहा हैं बह निकली हैं अंतरमन से व्यापक मिठी अनंत इक नदी स्वयम का मुझ को नूतन परिचय होता जा रहा हैं समर्पण अर्पण त्याग प्रेम अखंडीत हृदय में पलता जा रहा हैं परोपकार की भावनाओ का शहद निकलता जा रहा हैं हम दोनो चिटी के भाती जैसे हो कर भी कोई अस्तित्व न हो ऐसे जीवित हैं विरह का शक्खर के इक इक दाने से भी मन स्वर्ग सुख प्राप्त करता जा रहा हैं प्रेम असाधारन हैं अनंत शक्तियो का यौवन हैं कोमल ममता से भरी माँ धरती ये अनंत पिता गगन नीला ये त्रिभुवन हैं चैतन्य दिव्यता का प्रत्यक्ष स्वयं ईश्वर सुरज के रूप में प्रकाशित विराजित हैं शेष जीवन हैं हम सब में जो जीवन मृत्यू बन कर श्रुष्टि में प्रवाहित हैं सब कुछ हैं प्रत्यक्ष सत्य प्रकृती के कन कन में स्थिर अस्थिर सदियों से ये प्राण स्वयं प्रकाशित होने की मंजिल की तरफ बढता जा रहा हैं ©Vinod Ganeshpure"

 White 


" प्राण स्वयं प्रकाशित "

हम दूर हैं अंतर निरंतर बढता जा रहा हैं 
पर स्नेह एक दुसरे के प्रति चढता जा रहा हैं 
अब चिंताये सोच अविश्वास की खोज हीं नहीं 
हर इक पल सम्मान प्रेम वास्तविक विचार बढता जा रहा हैं 

आखे रंग रूप भौतिकता का जहर डुबता जा रहा हैं 
वासनाओ की तृप्ती खारा समंदर सुखता जा रहा हैं 
बह निकली हैं अंतरमन से व्यापक मिठी अनंत इक नदी 
स्वयम का मुझ को नूतन परिचय होता जा रहा हैं 

समर्पण अर्पण त्याग प्रेम अखंडीत हृदय में पलता जा रहा हैं 
परोपकार की भावनाओ का शहद निकलता जा रहा हैं 
हम दोनो चिटी के भाती जैसे हो कर भी 
कोई अस्तित्व न हो ऐसे जीवित हैं 
विरह का शक्खर के इक इक दाने से भी 
मन स्वर्ग सुख प्राप्त करता जा रहा हैं 

प्रेम असाधारन हैं अनंत शक्तियो का यौवन हैं 
कोमल ममता से भरी माँ धरती ये 
अनंत पिता गगन नीला ये त्रिभुवन हैं 
चैतन्य दिव्यता का प्रत्यक्ष स्वयं ईश्वर 
सुरज के रूप में प्रकाशित विराजित हैं

शेष जीवन हैं हम सब में जो जीवन मृत्यू बन कर 
श्रुष्टि में प्रवाहित हैं 
सब कुछ हैं प्रत्यक्ष सत्य प्रकृती के कन कन में 
स्थिर अस्थिर सदियों से 
ये प्राण स्वयं प्रकाशित होने की मंजिल की तरफ बढता जा रहा हैं

©Vinod Ganeshpure

White " प्राण स्वयं प्रकाशित " हम दूर हैं अंतर निरंतर बढता जा रहा हैं पर स्नेह एक दुसरे के प्रति चढता जा रहा हैं अब चिंताये सोच अविश्वास की खोज हीं नहीं हर इक पल सम्मान प्रेम वास्तविक विचार बढता जा रहा हैं आखे रंग रूप भौतिकता का जहर डुबता जा रहा हैं वासनाओ की तृप्ती खारा समंदर सुखता जा रहा हैं बह निकली हैं अंतरमन से व्यापक मिठी अनंत इक नदी स्वयम का मुझ को नूतन परिचय होता जा रहा हैं समर्पण अर्पण त्याग प्रेम अखंडीत हृदय में पलता जा रहा हैं परोपकार की भावनाओ का शहद निकलता जा रहा हैं हम दोनो चिटी के भाती जैसे हो कर भी कोई अस्तित्व न हो ऐसे जीवित हैं विरह का शक्खर के इक इक दाने से भी मन स्वर्ग सुख प्राप्त करता जा रहा हैं प्रेम असाधारन हैं अनंत शक्तियो का यौवन हैं कोमल ममता से भरी माँ धरती ये अनंत पिता गगन नीला ये त्रिभुवन हैं चैतन्य दिव्यता का प्रत्यक्ष स्वयं ईश्वर सुरज के रूप में प्रकाशित विराजित हैं शेष जीवन हैं हम सब में जो जीवन मृत्यू बन कर श्रुष्टि में प्रवाहित हैं सब कुछ हैं प्रत्यक्ष सत्य प्रकृती के कन कन में स्थिर अस्थिर सदियों से ये प्राण स्वयं प्रकाशित होने की मंजिल की तरफ बढता जा रहा हैं ©Vinod Ganeshpure

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