उम्र के सफ़र में ये पल अनमोल हैं, फिर भी हम फ़िक्र | हिंदी कविता

"उम्र के सफ़र में ये पल अनमोल हैं, फिर भी हम फ़िक्र का भार बना रखा है। जिनसे मिली हो ख़ुशबू जीने की, उन लम्हों को ही बेकार बना रखा है। ख़ुदा की रहमत का शुक्र न किया, हर ख़्वाहिश को इंतज़ार बना रखा है। जो मिल रहा है, वो सब खास है, फिर भी किस्मत से तकरार बना रखा है। पलकों पे रखिए हर इक ख्वाब को, जिंदगी को क्यों बेज़ार बना रखा है? ©नवनीत ठाकुर"

 उम्र के सफ़र में ये पल अनमोल हैं,
फिर भी हम फ़िक्र का भार बना रखा है।

जिनसे मिली हो ख़ुशबू जीने की,
उन लम्हों को ही बेकार बना रखा है।

ख़ुदा की रहमत का शुक्र न किया,
हर ख़्वाहिश को इंतज़ार बना रखा है।

जो मिल रहा है, वो सब खास है,
फिर भी किस्मत से तकरार बना रखा है।

पलकों पे रखिए हर इक ख्वाब को,
जिंदगी को क्यों बेज़ार बना रखा है?

©नवनीत ठाकुर

उम्र के सफ़र में ये पल अनमोल हैं, फिर भी हम फ़िक्र का भार बना रखा है। जिनसे मिली हो ख़ुशबू जीने की, उन लम्हों को ही बेकार बना रखा है। ख़ुदा की रहमत का शुक्र न किया, हर ख़्वाहिश को इंतज़ार बना रखा है। जो मिल रहा है, वो सब खास है, फिर भी किस्मत से तकरार बना रखा है। पलकों पे रखिए हर इक ख्वाब को, जिंदगी को क्यों बेज़ार बना रखा है? ©नवनीत ठाकुर

हर ख्वाहिश को इंतजार बना रखा है

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