दरभंगा नगर हमर सजीव सपन,
संस्कृति-सभ्यता के बानगी अपन।
पान-सिंघार के सौरभ सगर में भरल,
माछ-मखान से धरती अँगना में सजल।
दरभंगा मधुबनी सँ मधुर मुस्की,
माछ के स्वाद आ सगर में रसकी।
रसभरी रसगुल्ला, दही-चूड़ा के थाल,
भोज-भात में भेटल अपन समाजक हाल।
मिथिला के रंग, आ दरभंगा के रीत,
प्रेम आ अपनापन सँ भरल छैक प्रीत।
मधुबनी चित्र में रंग-बिरंगी साज,
माँ सीता के गाथा सँ सुशोभित समाज।
हर घर में कला, हर मन में प्रेम,
ई मिथिला के भूमि, छै मोनक हार-गहने।
लागे जइसे गीत-संगीत के मधुर झंकार,
मंदिर के घंटी आ गामक ओ संसार।
साधना, प्रेम, आ अपनत्व के जोत,
मिथिला के धरती पर पग-पग में मोत।
ई धरती अमर, ई संस्कृति महान,
मिथिला के सुंदरता के सब करत गुणगान।
महल-महल में गूंज रहल छै इतिहास,
दरभंगा राज के, जे करलक विश्वास।
कला आ संगीत के अजगुत गहना,
अहाँके मोन में बसा लेत ई रचना।
धरोहर में छैक ई भूमि के अंखफोर शान,
पग-पग पर भेटत मिथिला के पहचान।
दरभंगा के सौंन्दर्य, अहींके मोन हरत,
मिथिला के माटि सँ ह्रदय में प्रेम भरत।
©Avinash Jha
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