सोच रही थी, आपको सोचकर कुछ नया लिखूं जो प्रसांगिक | हिंदी कविता

"सोच रही थी, आपको सोचकर कुछ नया लिखूं जो प्रसांगिक भी रहे हम जब विवाह में,वचन लेते सात फेरों के साथ कि सात जन्म तक रहेंगें साथ, तब रहता नहीं ज्ञात कौन सा जन्म है हम बस ये चाहते हैं कि गर सात जन्म के बाद भी प्रसन्न हो मुझसे ईश्वर तो भी रहें आप ही वर। ©Preeti Gupta"

 सोच रही थी, आपको सोचकर 
कुछ नया लिखूं
जो प्रसांगिक भी रहे 
हम जब विवाह में,वचन लेते सात 
फेरों के साथ 
कि सात जन्म तक 
रहेंगें साथ, तब रहता नहीं ज्ञात
कौन सा जन्म है
हम बस ये चाहते हैं
कि गर सात जन्म के बाद भी 
प्रसन्न हो मुझसे ईश्वर
तो भी रहें आप ही वर।

©Preeti Gupta

सोच रही थी, आपको सोचकर कुछ नया लिखूं जो प्रसांगिक भी रहे हम जब विवाह में,वचन लेते सात फेरों के साथ कि सात जन्म तक रहेंगें साथ, तब रहता नहीं ज्ञात कौन सा जन्म है हम बस ये चाहते हैं कि गर सात जन्म के बाद भी प्रसन्न हो मुझसे ईश्वर तो भी रहें आप ही वर। ©Preeti Gupta

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