मैं पीड़ित हूं नियति के न्याय से
और तुम मुझसे गीत गाने की बात कर रहे हो
मन पर अनगिनित घाव पड चुकेहै मेरे
और तुम मुझे आघात सह लेने की बात कर रहेहो
कर्मो की निरंतरता मुझे थकाने में व्यस्त है
और तुम मुझसे मुस्कराने की अपेक्षा कर रहे हो
दुखो का दर्द मेरी हार का बिगुल बजा चुका है
और तुम हो कि मुझे जीत के लिये मूड़ता भरे मन्त्र सिखा रहेहो
©Parasram Arora
नियति का न्याय.....