तुम हमें छोड़ कर यूँ शहर आ गए
बे-सबब ही सही तुम किधर आ गए
याद आती मुलाकात की रात भी
ख़्वाब में ही सही तुम नज़र आ गए
मिलते अब हम से वो अजनबी की तरह
राह में छोड़ के रहगुज़र आ गए
अश्क के आबशार बहते ही रहे
पत्थरों से हमें छोड़ कर आ गए
प्रीत की ज़िंदगी पर तेरा हक नहीं
हम ये कौन सी अब डगरआ गए ।
हरप्रीत कौर
©हरप्रीत कौर की ज़ुबानी कविता किस्से कहानी
#UskeSaath #हमें छोड़ दिया