प्रिय डायरी ✍️आज की डायरी✍️ ✍️ग़ज़ | हिंदी कविता

"प्रिय डायरी ✍️आज की डायरी✍️ ✍️ग़ज़ल बना लेता हूँ✍️ लिखता हूँ शौक से कोई शायर नहीं मैं , ज़िन्दगी के कुछ फ़लसफ़े सुना लेता हूँ । जो भी गुज़री है उसे उसी अंदाज़ में मैं , महफ़िलों में बस गीतों में गुनगुना लेता हूँ । हालात का बयाँ होना ओठों से मुश्क़िल है , कुछ अल्फ़ाज़ों को शेर में भुना लेता हूँ ।। क़लम उठती है जब कागज पे चलेगी ही , चन्द पंक्तियों में फ़िर गज़ल बना लेता हूँ ।। समझ लेते हैं लोग दुःख-दर्द का मारा मुझे , कुछ जज़्बातों को इसलिए घुमा लेता हूँ ।। कुछ फ़साने से भी शोहरत मिला करती है , उन अफ़सानों को हक़ीक़त बना लेता हूँ ।। ✍️नीरज✍️ ©डॉ राघवेन्द्र"

 प्रिय डायरी ✍️आज की डायरी✍️
                  ✍️ग़ज़ल बना लेता हूँ✍️

लिखता हूँ शौक से कोई शायर नहीं मैं ,
ज़िन्दगी के कुछ फ़लसफ़े सुना लेता हूँ ।
जो भी गुज़री है उसे उसी अंदाज़ में मैं ,
महफ़िलों में बस गीतों में गुनगुना लेता हूँ ।

हालात का बयाँ होना ओठों से मुश्क़िल है ,
कुछ अल्फ़ाज़ों को शेर में भुना लेता हूँ ।।
क़लम उठती है जब कागज पे चलेगी ही ,
चन्द पंक्तियों में फ़िर गज़ल बना लेता हूँ ।।

समझ लेते हैं लोग दुःख-दर्द का मारा मुझे ,
कुछ जज़्बातों को इसलिए घुमा लेता हूँ ।।
कुछ फ़साने से भी शोहरत मिला करती है ,
उन अफ़सानों को हक़ीक़त बना लेता हूँ ।।

            ✍️नीरज✍️

©डॉ राघवेन्द्र

प्रिय डायरी ✍️आज की डायरी✍️ ✍️ग़ज़ल बना लेता हूँ✍️ लिखता हूँ शौक से कोई शायर नहीं मैं , ज़िन्दगी के कुछ फ़लसफ़े सुना लेता हूँ । जो भी गुज़री है उसे उसी अंदाज़ में मैं , महफ़िलों में बस गीतों में गुनगुना लेता हूँ । हालात का बयाँ होना ओठों से मुश्क़िल है , कुछ अल्फ़ाज़ों को शेर में भुना लेता हूँ ।। क़लम उठती है जब कागज पे चलेगी ही , चन्द पंक्तियों में फ़िर गज़ल बना लेता हूँ ।। समझ लेते हैं लोग दुःख-दर्द का मारा मुझे , कुछ जज़्बातों को इसलिए घुमा लेता हूँ ।। कुछ फ़साने से भी शोहरत मिला करती है , उन अफ़सानों को हक़ीक़त बना लेता हूँ ।। ✍️नीरज✍️ ©डॉ राघवेन्द्र

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