की अब कोई मिलने भी नहीं आता, दीवारें राह तकती है,
जुगनूए भी शोर करती है, तन्हाई मार देती हैं।
कोई जाकर कह दो उसको भी,
तेरे नाम से बिंदी लगाने वाली अब कलम उठाती है।
की समझा था तूने जिसे रौशने बाजार मुहब्बत में,
वो अब किसी का आशियाना गुलजार करती है।
तमन्ना थी की जाकर उससे एक बार मिल लू ,
नहीं किसी को झूठी मुहब्बत बर्बाद करती है,
गर मिल जाएं सच्चा साथी तो,
बर्बाद जिंदगी भी आबाद करती है।
और देख अब तू उसके हालात "ममता" ,
खेला करता था जिंदगियों से जो ,
दुनियां उसे आवारा कहती है।
mamtaj priya ✍️✍️✍️
©Mamtaj Priya
मेरी कलम से✍️✍️✍️✍️✍️