"टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा था
पांडवों ने कुछ कम कौरवों ने कुछ ज्यादा
क्या अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय
दोनों ही पक्षों को खोना ही खोना है
अंधों से शोभित था युग का सिंहासन
दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा
दोनों ही पक्षों में जीता अंधापन।।"
-धर्मवीर भारती
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