दिमाग खराब हो चुका है। कुछ सोचने समझने की इच्छा नहीं है। खुद से कोफ्त होने लगी है। लोग व्यस्त होते जा रहे हैं और मैं और खाली होती जा रही हूं। पढ़ने की इच्छा प्रबल नहीं होती दिख रही। लिखने की इच्छा मृत समान है। सिनेमा देखने की लत तो कभी थी ही नहीं। कैमरे से भी डर लगने लगा है। शक्ल जंगलियों सी होती जा रही है। अक्ल घास चरने जा चुकी है।
हर कुछ दिन में सबसे दूरी बना लेती हूं। फिर कुछ दिन में वापस आ जाती हूं। किसी का भी कुछ कहना अच्छा नहीं लगता। सुन कर हर बात अनसुनी कर देती हूं। लोग कहते हैं अजीब हो चुकी हूं। हां मैं कहती हूं कि मैं अजीब हो चुकी हूं। इतनी बकवास कोई ऐसे ही करने की हिम्मत नहीं करता। कोशिशें नाकाम होती जा रही हैं।
ये सब तुम्हारे साथ भी हो रहा होगा। मैं अकेली नहीं। तुम सब भी मेरे जैसे ही हो। हम सब खाली हो चुके हैं। कुछ भरा है तो बस ऐसी बकवास जिसे करने से हम कतराते हैं। वो बकवास जो असल में अहसास है जिससे हम भाग रहे हैं और फिर भी हर रात उससे मिलना पड़ता है। यह जिंदगी से मेरी पहली मुलाकात है। आंसू और खून तो निकलते चले आए हैं, आगे अगर इससे मिलना हुआ तो और बहुत कुछ निकलेगा।
फिलहाल मुझे एक बार फिर यह दुःख हुआ है कि मैंने एक निरर्थक प्रयास किया लिखने का। मेरी अभिव्यक्ति मर चुकी है। मैं मूक हो जाती हूं और तुम बधिर हो जाओ। अंधे तो हम हैं ही कि सब एक ही हाल में हो कर भी कहते हैं "बस भाई सब बढ़िया है।"
©Shagun Sharma
#bekhudi