प्राणेश के प्रेम में पागल हो
अंखियां अश्रु टपकाती हैं,
तुम दूर दूर जो रहते हो,
यामिनी भी हंसी उड़ाती हैं।
प्रतिपल हरपल है आस लगी
अंखिया प्यासी रहती हैं
मदगंध मे ब्याकुल हृदय हुआ
तुमको ही ढूंढा करती हैं।
अमंवा की डाली बौर चढ़ी
बौराईल मोरा जियरवा है
आ भी जाओ प्राणप्रिये
मधुमास की स्वर्णिम बेला है।
हृदयस्थल से निकली तरंग,
तरंगों के सहारे आ जाओ
मनभावन मौसम की पुकार
हृदय में धूम मचावत है।
बसंत पंचमी पर आप सभी को हृदयाँचल से शुभकामनाएँ।
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स्वरचित ✍️
नरेश चन्द्र"लक्ष्मी"
फरीदाबाद हरियाणा
©Naresh Chandra
प्राणेश के प्रेम में पागल हो
अंखियां अश्रु टपकाती हैं,
तुम दूर दूर जो रहते हो,
यामिनी भी हंसी उड़ाती हैं।
प्रतिपल हरपल है आस लगी
अंखिया प्यासी रहती हैं
मदगंध मे ब्याकुल हृदय हुआ