【सन्नाटा बुनता हूँ】
इस भीड़ में बस तू ही तो मेरी है
मैं तेरे इस शहर में सन्नाटा बुनता हूँ।।
जब भी तेरी गली से गुज़रूं दिल की धड़कन सुनता हूँ
हाँ मैं तेरे इस शहर में सन्नाटा बुनता हूँ।।
तेरे इंतेज़ार में भूमि से मरूभूमि बना हूँ
इस गर्म रेतीले कण में लावा सा भुना हूँ।।
मेरे आँखों के आईने में तेरी तस्वीर नज़र आती है,
मोहब्बत के पंक में ऊपर से नीचे सना हूँ।
जब भी तू राधिका बनती है तो मैं तेरा श्याम बनता हूँ,
हाँ मैं तेरे इस शहर मे सन्नाटा बुनता हूँ।
हाँ मैं तेरे इस शहर मे सन्नाटा बुनता हूँ।।
©Gyan Prakash Yadav