"चलो जीवन की उस उमंग को फिर खींच लाएं
फिर जिएं वही बचपन
जो खुशियों के गुल खिलाये
टूट गए किसी फल की तरह पक कर जमीन पर
जो मिठास से भरे थे जीवन के पल
मालूम है कि वो वापस आ नहीं सकते
लेकिन बीज बौ कर उन्हें फिर से
आँगन में बड़ा किया जा सकता है
अपनों के आसपास वही अतीत का जीवन जिया जा सकता है
©PRADYUMNA AROTHIYA
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