रौंद अतीत भविष्य का हिसाब करते हैं,
ज़ुल्मी अब इंसाफ कि बात करते हैं।
छिनकर प्यासे से पानी का हक़,
मेहरबां मेहरबानी कि बात करते हैं।
कलतक इनके हाथों का अधिकार बनी थी जूतियाँ,
भेदभाव षड्यंत्र कि ख़ूब चली कुरीतियाँ,
कलतक उनके अस्तित्व पर इनका अंकुश बलवान था,
वही अंकुश वाले अब समानता की बात करते हैं।
रविकुमार
रौंद अतीत भविष्य का हिसाब करते हैं,
ज़ुल्मी अब इंसाफ कि बात करते हैं।
छिनकर प्यासे से पानी का हक़,
मेहरबां मेहरबानी कि बात करते हैं।
कलतक इनके हाथों का अधिकार बनी थी जूतियाँ,
भेदभाव षड्यंत्र कि ख़ूब चली कुरीतियाँ,
कलतक उनके अस्तित्व पर इनका अंकुश बलवान था,