सफर आसां हो इसलिए कम सामान रखते हैं
ये लोग अपने जेह़न में कितने अरमान रखते हैं
उसका वजूद है वो सच को झूठ कहता है
यहां के लोग एक अपना निशान रखते हैं
वक्त आता है तो लब्ज नहीं बचते है
जो लोग बोलते हैं हम भी जुबान रखते हैं
अपनी खुराक वतन के नाम करते है
कितना बड़ा दिल ये किसान रखते हैं
जिसके गुलाम रहे वो भाषा ना हमसे बोलो तुम
हम हिंदुस्तानी अपने दिलो में हिंदुस्तान रखते हैं
©कवि रोशनलाल "हंस"
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