White उसने बोला था कि कुल तो है
जो तुम मुझसे छिपाती हो।
अपनी आँखों में क्यों ये दर्द लेकर घूमती हो।
क्यों दिखाई देती है तुम्हारी
मुस्कान में उदासी की लकीरें ।
बह जाने दो ऑंखों से दरिया को।
कैसे बह जाने दूँ दरिया को अपनी आँखों से।
कैसे आ जाने दूँ कयामत को ,और डूब
जाने दूँ सबके अरमानों को।
मैंने कस कर बाँध रखी है अपनी गिरह।
जिसमें बाँधी है पिता की इज्जत,पति का सम्मान,
और बच्चों का भविष्य। और बाँधा है
अपने सपनों और ख्वाहिशो को।
बाँधे बैठी हूँ सब कुछ ऐसे,
जैसे बाँधा था शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में।
बचाने धरा को डूबने से, मैं भी बचा रही हूँ
बहुत कुछ डूबने से। (आशिमा)
©Dr Archana
#alone कविता