कुछ इत्तेफाक था कुछ बदगुमानी थी
हमने समझा कि मोहब्बत रूहानी थी
तेरे कुर्ब में भी सनम क्या जिंदगानी थी
दिन भी खूबसूरत था रात भी सुहानी थी
प्यार उसको भला कैसे मोआसरा कहता
वह तो उसकी कच्ची उम्र की नादानी थी
हमारा किस्सा भी कुछ अलग कहाँ था
वही लैला मजनू की अधूरी कहानी थी
जिस दिए कि नूर से खतरा है मेरी आँखों को
उसी से कमबखत ये आंखें भी टकरानी थी
जिस शाख पे हमारा था नशेमन 'तबस्सुम'
तूफान को भी जालिम उसी पे आनी थी
-सुरैया तबस्सुम
©Suraiyya Tabassum
#ghazal @Anshu writer Rani @POOJA UDESHI