बसंत दिया बसंत ने दस्तक गर्वित धरा का मस्तक नव तरु | हिंदी कविता

"बसंत दिया बसंत ने दस्तक गर्वित धरा का मस्तक नव तरु पल्लव आए रूप हुआ मनमोहक खिल उठे पुष्प बहुतेरे चहुंओर लता को घेरे ऐसा लगता धरती को रंगों से रंगें चितेरे कोयलें गीत है गाती धुन उनकी मन हर्षाती भौरे मृदंग ले करके आए बन कर बाराती बेखुद उत्सव कोई आया या है वसंत की माया सज गई धरा दुल्हन सी आकाश देख ललचाया ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 बसंत
दिया बसंत ने दस्तक
गर्वित धरा का मस्तक
नव तरु पल्लव आए
रूप हुआ मनमोहक

खिल उठे पुष्प बहुतेरे
चहुंओर लता को घेरे
ऐसा लगता धरती को
रंगों से रंगें चितेरे

 कोयलें गीत है गाती
धुन उनकी मन हर्षाती
भौरे मृदंग ले करके
आए बन कर बाराती

बेखुद उत्सव कोई आया
या है वसंत की माया
सज गई धरा दुल्हन सी
आकाश देख ललचाया

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

बसंत दिया बसंत ने दस्तक गर्वित धरा का मस्तक नव तरु पल्लव आए रूप हुआ मनमोहक खिल उठे पुष्प बहुतेरे चहुंओर लता को घेरे ऐसा लगता धरती को रंगों से रंगें चितेरे कोयलें गीत है गाती धुन उनकी मन हर्षाती भौरे मृदंग ले करके आए बन कर बाराती बेखुद उत्सव कोई आया या है वसंत की माया सज गई धरा दुल्हन सी आकाश देख ललचाया ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#बसंत_ऋतु

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