देकर के बुलावा अब मुझे
तुम छल नहीं सकते
मुझे बर्बाद करने के
इरादे फल नहीं सकते
लगालो आग चारों ओर
करो सिमित सभी रस्ते
मैं आंधी हूँ मुझे
तुम कैद ऐसे कर नहीं सकते
धरा की धुल को कैसे
करोगे कैद मुट्ठी में
मेरे अस्तित्व को ऐसे
ख़तम तुम कर नहीं सकते
उठेगी मांग अपनी भी
फलक के इन बाज़ारो में
लकीरें इस हथेली की
ख़तम तुम कर नहीं सकते
©Virat Kaushik
😊🙏🏻
#Mic