White ज़िंदगी के तमाशे में,, नासमझी का कोहरा छंट र | हिंदी कविता

"White ज़िंदगी के तमाशे में,, नासमझी का कोहरा छंट रहा है,,, धीरे धीरे ही सही "बेदर्द",, सबके क़िरदार से पर्दा हट रहा है,,,, ©Rakesh Songara"

 White ज़िंदगी के तमाशे में,,
नासमझी का 
कोहरा छंट रहा है,,,
धीरे धीरे ही सही "बेदर्द",,
सबके क़िरदार से पर्दा हट रहा है,,,,

©Rakesh Songara

White ज़िंदगी के तमाशे में,, नासमझी का कोहरा छंट रहा है,,, धीरे धीरे ही सही "बेदर्द",, सबके क़िरदार से पर्दा हट रहा है,,,, ©Rakesh Songara

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