हे औघड़दानी! तेरे शहर में हम रहते हैं।
तेरे चरणों की रज पाने,सब कुछ ही सहते हैं।।
जनम जनम की फटी बिवाई,उफ़ तक ना कहते हैं।
नाम तुम्हारा जो लेते हैं,वैतरनी से तर जाते हैं।।
©Bharat Bhushan pathak
हे औघड़दानी! तेरे शहर में हम रहते हैं।
तेरे चरणों की रज पाने,सब कुछ ही सहते हैं।।
जनम जनम की फटी बिवाई,उफ़ तक ना कहते हैं।
नाम तुम्हारा जो लेते हैं,वैतरनी से तर जाते हैं।।