*मीरा का विश्वास*
मीरा संग जब हो 'विश्वास' तो
क्यों करे वो देखो किसी से आस
रिश्तों के अटूट बंधन में बंधकर,
निभाए वो जीवन भर का साथ।
पत्नी धर्म को निभाए हँसी-खुशी से
फिर क्यों करे वो किसी पर विश्वास
बिन मीरा संग विश्वास लगे अधुरा
लगता है मन देखो जग में बेकार
बिन मीरा के हर संयोग है अधुरा-
विश्वास बेगैर होए ना सपना कोई पूरा
अपने घर-आँगन को वा प्यार से सजाए
दामन खुशियों का भर मन वा छा जाए
हर सुख-दुःख में मीरा साथ निभाए
फिर क्यों करे वो किसी से आस
*संदीप कुमार'विश्वास'*
©संदीप
कविता