mujhe chod do mere haal pe मैं निराश हूं, कृंदनों | हिंदी कविता

"mujhe chod do mere haal pe मैं निराश हूं, कृंदनों से। मुक्त हो जाऊं,, बंधनों से। मुझे समझाने में, बरसों लगेंगे। ज़ख्म गहरे हैं,, जी भर सहेंगे। फंस गए अब, किसी की चाल पे, मुझे छोड़ दो,, मेरे हाल पे।। ©Satish Kumar Meena"

 mujhe chod do mere haal pe  मैं निराश हूं,
कृंदनों से।
मुक्त हो जाऊं,,
बंधनों से।
मुझे समझाने में,
बरसों लगेंगे। 
ज़ख्म गहरे हैं,,
जी भर सहेंगे।
फंस गए अब,
किसी की चाल पे,
मुझे छोड़ दो,,
मेरे हाल पे।।

©Satish Kumar Meena

mujhe chod do mere haal pe मैं निराश हूं, कृंदनों से। मुक्त हो जाऊं,, बंधनों से। मुझे समझाने में, बरसों लगेंगे। ज़ख्म गहरे हैं,, जी भर सहेंगे। फंस गए अब, किसी की चाल पे, मुझे छोड़ दो,, मेरे हाल पे।। ©Satish Kumar Meena

मेरे हाल पे

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