इक बंजर सी ज़मीन को सींचकर कभी हमने सृजन के वो बीज भी बोए ...
जिन्होंने अपनों की बातों को बुरा मानकर गैरों को गले लगाया
अंततः वो अपनों के लिए ही रोए....
एक अन चाही मंज़िल की दौड़ थी और मेरा नसीब की मैं पहले पहुंचा...
एक लंबी दूरी,कुछ मीठी कड़वी यादें,और फिर दो निश्छल हृदय फफक फफक कर रोए।।
©ThoughtsofRDR~
#TereHaathMein