अपनी ज़िन्दगी को कुछ यूं सवांर रहा हूं.. हर गुजरते | हिंदी Shayari

"अपनी ज़िन्दगी को कुछ यूं सवांर रहा हूं.. हर गुजरते लम्हें को कागज़ में उतार रहा हूं.. बेशक दर्द की मात्रा ज़्यादा घुली है स्याही में पर जो भी है, ज़िन्दगी कुछ यूं ही गुज़ार रहा हूं.. ©Neeraj Verma"

 अपनी ज़िन्दगी को कुछ यूं सवांर रहा हूं..
हर गुजरते लम्हें को कागज़ में उतार रहा हूं..
बेशक दर्द की मात्रा ज़्यादा घुली है स्याही में
पर जो भी है, ज़िन्दगी कुछ यूं ही गुज़ार रहा हूं..

©Neeraj Verma

अपनी ज़िन्दगी को कुछ यूं सवांर रहा हूं.. हर गुजरते लम्हें को कागज़ में उतार रहा हूं.. बेशक दर्द की मात्रा ज़्यादा घुली है स्याही में पर जो भी है, ज़िन्दगी कुछ यूं ही गुज़ार रहा हूं.. ©Neeraj Verma

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