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music director & producer
अपनी ज़िन्दगी को कुछ यूं सवांर रहा हूं.. हर गुजरते लम्हें को कागज़ में उतार रहा हूं.. बेशक दर्द की मात्रा ज़्यादा घुली है स्याही में पर जो भी है, ज़िन्दगी कुछ यूं ही गुज़ार रहा हूं.. ©Neeraj Verma
Neeraj Verma
5 Love
ह्रदय भीतर कोई अपना जब घाव बन के रहा जाए निर्झर नयन से अश्रु भी जलधार बन के बह जाएं काली घटा सी वेदना अंधियार जब करने लगे विकराल जलता भानु भी बस जुगनू सा नज़र आए ©Neeraj Verma
4 Love
कुछ नहीं उलूल झुलूल लिखता हूं... दिल पे मत लेना, मैं फ़िज़ूल लिखता हूं... नवाज़िश है आपकी जो शायरी समझते है... मैं अपने गुज़रे ज़माने की भूल लिखता हूं... ©Neeraj Verma
12 Love
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