विषय-वीर/ आल्हा छंद
विधा-१६-१५ मात्रा प्रति चरण,चार चरण।
दो-दो चरण समतुकांत।चरणांत गुरु लघु रखना है।
छंदों का तुम भी कर जाना,केवल थोड़ा ही अभ्यास।
नहीं कभी तुम ऐसे-वैसे,करना नहीं शब्द विन्यास।।
ये विधा है बहुत ही प्यारी,सीखो इसका अभी विधान।
अँधेरे में तीर ना छोड़ो,सोच-समझ करना संधान।।
काव्य लगे बिना छंद सूना,सीखो थोड़ा इसको आज।
स्वरविहीन ही गाना ये है,संगीत बिना ये है साज।।
©Bharat Bhushan pathak
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