रिम-झिम बरखा की फुहार मन में जगी मिलन की आस दिल मे | हिंदी कविता

"रिम-झिम बरखा की फुहार मन में जगी मिलन की आस दिल में उठी उमंग हजार सजन तुम आन मिलो अब रे। मौसम मस्त मतवाला उठी उर-अंतर में ज्वाला बहारें करती यही पुकार सजन तुम आन मिलो अब रे। प्यारा पपीहा धुन ये सुनाये पियू पियू करके दिल है जलाये पिया जी आन मिलो अब रे सजन तुम आन मिलो अब रे। स्वरचित ✍️ नरेशचन्द्र"लक्ष्मी" फरीदाबाद हरियाणा। ©Naresh Chandra"

 रिम-झिम बरखा की फुहार
मन में जगी मिलन की आस
दिल में उठी उमंग हजार
सजन तुम आन मिलो अब रे।

मौसम मस्त मतवाला
उठी उर-अंतर में ज्वाला
बहारें करती यही पुकार
सजन तुम आन मिलो अब रे।

प्यारा पपीहा धुन ये सुनाये
पियू पियू करके दिल है जलाये
पिया जी आन मिलो अब रे
सजन तुम आन मिलो अब रे।
स्वरचित ✍️
नरेशचन्द्र"लक्ष्मी"
फरीदाबाद हरियाणा।

©Naresh Chandra

रिम-झिम बरखा की फुहार मन में जगी मिलन की आस दिल में उठी उमंग हजार सजन तुम आन मिलो अब रे। मौसम मस्त मतवाला उठी उर-अंतर में ज्वाला बहारें करती यही पुकार सजन तुम आन मिलो अब रे। प्यारा पपीहा धुन ये सुनाये पियू पियू करके दिल है जलाये पिया जी आन मिलो अब रे सजन तुम आन मिलो अब रे। स्वरचित ✍️ नरेशचन्द्र"लक्ष्मी" फरीदाबाद हरियाणा। ©Naresh Chandra

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