कोई आग है जो सिमट गया है, कोई अंगार है जो बुझ नही | हिंदी Shayari

"कोई आग है जो सिमट गया है, कोई अंगार है जो बुझ नहीं रहा। एक वो है जो जा चुका है कब का, एक मैं हूं जो उसको भूल नहीं रहा। वो किस तरह गुज़ारता होगा वो वक़्त, जो कभी मेरा हुआ करता था। जाने कौन मिल गया होगा उसको, की अब वो मुझे ढूंढ नहीं रहा। मैं आज भी उसके वक़्त को, ख़ुद के साथ गुज़ारता हूं। उसके  लिखे हुए खतों को, आज भी घंटों निहारता हूं। एक ख़ून की लकीर है जो मिट गई है कबकी, एक स्याही का धब्बा है जो धूल नहीं रहा। होकर उससे दूर न जाने, क्या हुआ है मुझको। ना जाने किस उदासी ने, घेर लिया है मुझको। एक बादल है जो अब कहीं और बरस रहा है, एक दरख़्त है जो ये सुखा क़ुबूल नहीं रहा। एक वो है जो जा चुका है कब का, एक मैं हूं जो उसको भूल नहीं रहा।                                         - अनीश ©Anish kumar"

 कोई आग है जो सिमट गया है,

कोई अंगार है जो बुझ नहीं रहा।

एक वो है जो जा चुका है कब का,

एक मैं हूं जो उसको भूल नहीं रहा।


वो किस तरह गुज़ारता होगा वो वक़्त,

जो कभी मेरा हुआ करता था।

जाने कौन मिल गया होगा उसको,

की अब वो मुझे ढूंढ नहीं रहा।


मैं आज भी उसके वक़्त को,

ख़ुद के साथ गुज़ारता हूं।

उसके  लिखे हुए खतों को,

आज भी घंटों निहारता हूं।


एक ख़ून की लकीर है जो मिट गई है कबकी,

एक स्याही का धब्बा है जो धूल नहीं रहा।


होकर उससे दूर न जाने,

क्या हुआ है मुझको।

ना जाने किस उदासी ने,

घेर लिया है मुझको।


एक बादल है जो अब कहीं और बरस रहा है,

एक दरख़्त है जो ये सुखा क़ुबूल नहीं रहा।

एक वो है जो जा चुका है कब का,

एक मैं हूं  जो उसको भूल नहीं रहा।


                                        - अनीश

©Anish kumar

कोई आग है जो सिमट गया है, कोई अंगार है जो बुझ नहीं रहा। एक वो है जो जा चुका है कब का, एक मैं हूं जो उसको भूल नहीं रहा। वो किस तरह गुज़ारता होगा वो वक़्त, जो कभी मेरा हुआ करता था। जाने कौन मिल गया होगा उसको, की अब वो मुझे ढूंढ नहीं रहा। मैं आज भी उसके वक़्त को, ख़ुद के साथ गुज़ारता हूं। उसके  लिखे हुए खतों को, आज भी घंटों निहारता हूं। एक ख़ून की लकीर है जो मिट गई है कबकी, एक स्याही का धब्बा है जो धूल नहीं रहा। होकर उससे दूर न जाने, क्या हुआ है मुझको। ना जाने किस उदासी ने, घेर लिया है मुझको। एक बादल है जो अब कहीं और बरस रहा है, एक दरख़्त है जो ये सुखा क़ुबूल नहीं रहा। एक वो है जो जा चुका है कब का, एक मैं हूं जो उसको भूल नहीं रहा।                                         - अनीश ©Anish kumar

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