झुरमट में सितारों के वो इक तारा ख़ास था
क़िस्मत को मेरी तारा, वही था जो रास था
इस ज़िंदगी के घोर अंधेरों के दरमियां
उम्मीद आख़री था, वही पहली आस था
नज़रों से दूर, दूर बहुत दूर है आज वो
कल तक वो शख़्स दिल के कहीं आस पास था
मुझ से बिछड़ के वो भी तो कुछ खुश नही लगा
आंखे भी उस की भीगी थीं चेहरा उदास था
Imtiyaz Khan
©imtiyaz khan
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