तन्हा इस कदर हो गया हूँ मैं ठूँठ सा शज़र हो गया हू | हिंदी कविता

"तन्हा इस कदर हो गया हूँ मैं ठूँठ सा शज़र हो गया हूँ मैं एक दर भी ना खोज पाया मैं, इतना दरबदर हो गया हूँ मैं सबके दिल से उतर गया हूँ मैं ऐसा लगता है मर गया हूँ मैं छान कर ख़ाक सारी दुनियां का, बाद मुद्दत के घर गया हूँ मैं अब मुखौटों में छिपे हैं चेहरे, देखकर जिसको डर गया हूँ मैं एक हरसिंगार फूल सा जैसे, सुबह होते ही झर गया हूँ मैं आस का दीप जलाकर कब से, साँझ के पुल पे धर गया हूँ मैं रहगुज़र बेबसी के सारे वे, उनसे कब का गुज़र गया हूँ मैं मौत को याद करके लगता है, जैसे जीवन से भर गया हूँ मैं ✍️✍️ रवि श्रीवास्तव ©Ravi Srivastava"

 तन्हा इस कदर हो गया हूँ मैं 
ठूँठ सा शज़र हो गया हूँ मैं 

एक दर भी ना खोज पाया मैं,
इतना दरबदर हो गया हूँ मैं 

सबके दिल से उतर गया हूँ मैं 
ऐसा लगता है मर गया हूँ मैं

छान कर ख़ाक सारी दुनियां का,
बाद मुद्दत के घर गया हूँ मैं 

अब मुखौटों में छिपे हैं चेहरे,
देखकर जिसको डर गया हूँ मैं

एक हरसिंगार फूल सा जैसे,
सुबह होते ही झर गया हूँ मैं 

आस का दीप जलाकर कब से,
साँझ के पुल पे धर गया हूँ मैं 

रहगुज़र बेबसी के सारे वे, 
उनसे कब का गुज़र गया हूँ मैं 

मौत को याद करके लगता है,
जैसे जीवन से भर गया हूँ मैं

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava

तन्हा इस कदर हो गया हूँ मैं ठूँठ सा शज़र हो गया हूँ मैं एक दर भी ना खोज पाया मैं, इतना दरबदर हो गया हूँ मैं सबके दिल से उतर गया हूँ मैं ऐसा लगता है मर गया हूँ मैं छान कर ख़ाक सारी दुनियां का, बाद मुद्दत के घर गया हूँ मैं अब मुखौटों में छिपे हैं चेहरे, देखकर जिसको डर गया हूँ मैं एक हरसिंगार फूल सा जैसे, सुबह होते ही झर गया हूँ मैं आस का दीप जलाकर कब से, साँझ के पुल पे धर गया हूँ मैं रहगुज़र बेबसी के सारे वे, उनसे कब का गुज़र गया हूँ मैं मौत को याद करके लगता है, जैसे जीवन से भर गया हूँ मैं ✍️✍️ रवि श्रीवास्तव ©Ravi Srivastava

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