मौज में मौत भूल रहे हैं,
अपनी मौत खुद,कुबूल रहे हैं,
पठान मूवी तुम्हें दिखाकर,
तुम्हारी मौत का पैसा,
तुम्हीं से वसूल रहे हैं।
जोश में होश खो रहे हैं,
जागरण के समय सो रहे हैं,
मनोरंजन के नाम पर,
तुम्हारी संस्कृति,तुम्हारी सभ्यता से,
तुम्हें निर्मूल कर रहे हैं।
तुम हो कि गांधारी बने बैठे हो,
देश में कैंसर जैसी, बीमारी बने बैठे हो,
तुम वो दीपक हो,जिसे जलाकर,
तुम्हारे साथ वो इस देश की,
अस्मिता जला रहे हैं।
नफ़रत के बाजार में,
मोहब्बत की दुकान सजाने वाले,
मोहब्बत की दुकान में,
लव जिहाद की मिठाई बांटकर,
तुम्हारे साथ तुम्हारे अस्तित्व को,
समूल नष्ट कर रहे हैं।
©SK