White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ
खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ
वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना
खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ
सच है यही रोशनी जब भी उतरी
बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ
नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं
सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ
पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें
कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ
©सुरेश सारस्वत