a-person-standing-on-a-beach-at-sunset ज़िन्दगी की शाम ढलती चली गई !
उम्मीदें हाथ से फिसलती चली गई !
ये वक़्त का कारवाँ रुका नही कभी,
शक्ल मजबूरियाँ बदलती चली गई !
पहुँची न हसरतें मंज़िले मक़सूस तक, नाकामियाँ हमें निगलती चली गई !
©BABAPATHAKPURIYA
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