White बचा लो अपना अब परिवार -2 घरवालों में खत्म हो | हिंदी कविता

"White बचा लो अपना अब परिवार -2 घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 जहां बुजुर्गों की इज्जत थी निगरानी करते थे, डांट ठहाके देते और बातें मर्दानी करते थे। जिंदा रहना बची जिंदगी उनकी इसी जमाने में, सारी अहमियत तौल दी गई थाली भर के खाने में। दादी दादा से सजा हुआ अब दिखता नहीं घर द्वार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 जहां एक भाई भाई के खातिर राज्य था छोड़ा, सदियों में मां बेटे का रिश्ता न किसी ने तोड़ा। वहीं एक कमरे की लड़ाई गोली तक चलवाती है, अपनी स्वतंत्रता के खातिर मां बेटे को खा जाती है। कर्तव्यों को छोड़ सभी को दिखता बस अधिकार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 भारत की सभ्यता संस्कृति इसमें रही समाई, इसे मिटाने की साज़िश है दुनिया की सच्चाई। प्रेम जगाने वाला दीपक फिर से यहां जलाओ, बच्चों को शिक्षा के संग संग संस्कार सिखलाओ। इसी का करते दुनिया वाले सबसे पहले शिकार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 ©शुभम मिश्र बेलौरा"

 White बचा लो अपना अब परिवार -2
घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार।
बचा लो अपना अब परिवार -2
जहां बुजुर्गों की इज्जत थी निगरानी करते थे, 
डांट ठहाके देते और बातें मर्दानी करते थे। 
जिंदा रहना बची जिंदगी उनकी इसी जमाने में, 
सारी अहमियत तौल दी गई थाली भर के खाने में। 
दादी दादा से सजा हुआ अब दिखता नहीं घर द्वार, 
घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। 
बचा लो अपना अब परिवार -2
जहां एक भाई भाई के खातिर राज्य था छोड़ा,
सदियों में मां बेटे का रिश्ता न किसी ने तोड़ा।
वहीं एक कमरे की लड़ाई गोली तक चलवाती है, 
अपनी स्वतंत्रता के खातिर मां बेटे को खा जाती है। 
कर्तव्यों को छोड़ सभी को दिखता बस अधिकार, 
घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। 
बचा लो अपना अब परिवार -2
भारत की सभ्यता संस्कृति इसमें रही समाई,
इसे मिटाने की साज़िश है दुनिया की सच्चाई। 
प्रेम जगाने वाला दीपक फिर से यहां जलाओ,
बच्चों को शिक्षा के संग संग संस्कार सिखलाओ। 
इसी का करते दुनिया वाले सबसे पहले शिकार, 
घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। 
बचा लो अपना अब परिवार -2

©शुभम मिश्र बेलौरा

White बचा लो अपना अब परिवार -2 घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 जहां बुजुर्गों की इज्जत थी निगरानी करते थे, डांट ठहाके देते और बातें मर्दानी करते थे। जिंदा रहना बची जिंदगी उनकी इसी जमाने में, सारी अहमियत तौल दी गई थाली भर के खाने में। दादी दादा से सजा हुआ अब दिखता नहीं घर द्वार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 जहां एक भाई भाई के खातिर राज्य था छोड़ा, सदियों में मां बेटे का रिश्ता न किसी ने तोड़ा। वहीं एक कमरे की लड़ाई गोली तक चलवाती है, अपनी स्वतंत्रता के खातिर मां बेटे को खा जाती है। कर्तव्यों को छोड़ सभी को दिखता बस अधिकार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 भारत की सभ्यता संस्कृति इसमें रही समाई, इसे मिटाने की साज़िश है दुनिया की सच्चाई। प्रेम जगाने वाला दीपक फिर से यहां जलाओ, बच्चों को शिक्षा के संग संग संस्कार सिखलाओ। इसी का करते दुनिया वाले सबसे पहले शिकार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 ©शुभम मिश्र बेलौरा

#good_night परिवार

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