अब न मैं रूकुंगी यहां पर
उड़ते ही अब मुझे जाना है।
एक बार डोर छोड़ दो बच्चे
आसमान छू के दिखाना है।
बहुत छोटी है डोर तुम्हारी,
ऊंचे हैं उनसे सपने मेरे।
हवाओं के संग उड़ जाने दे
नहीं रहना अब संग तेरे।
समझता क्या है अपने आप को
मुझको राह दिखाता है,
आसमान में उड़ रही मैं
और जमीं से हुकुम चलाता है।
जा रही मैं डाली से टकराने
मुझको उससे न बचा पाएगा
तोड़ कर डोर उड़ जाऊंगी मैं
तू देख बड़ा पछताएगा।
डोर तोड़ कर भी पतंग
आसमान को न छू पाई
देख बच्चे चिल्ला रहें
आसमान से कटी पतंग आई।
-अजय
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