ज़िंदगी हसरतों  को  वक्त  की  आँधी  निगल 

"ज़िंदगी हसरतों  को  वक्त  की  आँधी  निगल  गई । इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई। लाखों  जुगत    किए   उम्र-ए-दराज  की । दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई । सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले । उसके ही हाथ कत्ल जिन्दगी निकल गई । आब-ए-हयात पी के भी न बच सका यहाँ । माटी का बना था  सो  माटी  में मिल  गई । नाज है किस बात का किसका गुरूर है । अच्छे-अच्छों  की यहाँ हवा  निकल गई । थामे थे जिसको भींच के दिल के करीब से । हाथों  से  वो  प्यार  की  डोरी  फिसल  गई । "बादल" गलत उठे थे कदम  राह-ए-शौक में, फिर सँभालते-संभालते जिन्दगी निकल गई।। ©Yashpal singh gusain badal' "

ज़िंदगी हसरतों  को  वक्त  की  आँधी  निगल  गई । इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई। लाखों  जुगत    किए   उम्र-ए-दराज  की । दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई । सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले । उसके ही हाथ कत्ल जिन्दगी निकल गई । आब-ए-हयात पी के भी न बच सका यहाँ । माटी का बना था  सो  माटी  में मिल  गई । नाज है किस बात का किसका गुरूर है । अच्छे-अच्छों  की यहाँ हवा  निकल गई । थामे थे जिसको भींच के दिल के करीब से । हाथों  से  वो  प्यार  की  डोरी  फिसल  गई । "बादल" गलत उठे थे कदम  राह-ए-शौक में, फिर सँभालते-संभालते जिन्दगी निकल गई।। ©Yashpal singh gusain badal'

#retro ज़िंदगी
हसरतों  को  वक्त  की  आँधी  निगल  गई ।
इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई।

लाखों  जुगत    किए   उम्र-ए-दराज  की ।
दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई ।

सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले ।

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