White ।। गजल।।
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रात भर पलके समुंद्र में भिगती रही,
सबब न हुआ तल्खियां ढुढ़ती रही।
फिक्र हूँ तो सिर्फं आरज़ू-ए-वस्ल की,
हर दफ़ा रंज में जमीं पर टुटती रही।
वजह तुझे पाने की नही, जाने की थी,
सवा़ल तेरे अक्स़ से ही मै पूछती रही।
अमल में हो आज, नफ़रतें करू कैसे,
इसी कश्मकश में खुद से जुझती रही।
क़ज़ा इश़्क के कफ़स में कैद हो जाऊँ,
सामने आये तो ताबिस हो रूठती रही।
जख्म़,दिल-ए-हर्जी तुम बहुत कर गये,
मै रज़ा,जनाब़ को अर्से से पूजती रही।
.......... संतोष शर्मा (कुशीनगर, उ•प्र)
दिनांक- 08/07/2024
शब्दार्थ
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आरज़ू-ए-वस्ल- चाहत
रंज-गम
क़ज़ा -भाग्य
कफ़स-पिजड़ा
ताबिस-दु:ख
रज़ा-इच्छा
©santosh sharma
#gazal meri