हर पल हर घड़ी घबरा रहा हूं मैं
कुछ ना कुछ पीछे छूटा जा रहा है
और आगे बढ़ा जा रहा हूं मै
स्वार्थ के अंधकार में डूबा जा रहा हूं मैं
अपनी ही परछाई को खोता जा रहा हूं मै
ख्याली राहों में आराम फरमा रहा हूं मैं
असल जिंदगी में धक्के खा रहा हूं मै
शिद्दत से जी चुरा रहा हूं मैं
किस्मत पर दोष मढे जा रहा हूं मैं
शुभचिंतकों की हां में हां मिलाते जा रहा हूं मैं
अपनी खामियों पर परदा गिराते जा रहा हूं मैं
हर पल हर घड़ी घबरा रहा हूं मैं
कुछ ना कुछ पीछे छूटा जा रहा है
और आगे बढ़ा जा रहा हूं मै
नीले गगन का आजाद परिंदा हूं मैं
दूसरों के टुकड़ों पर जीने वाला कारिंदा बन चुका हूं मैं
गुमनामी के अंधेरे में डूबता राही हूं मैं
जी वक्त रहते संभल ना पाया
तो समझ लेना राख की सुराही हूं मै
हसरतों की कशमकश में सब कुछ गवा चुका हूं मैं
जो अपने थे उन्हें भी पराया बना चुका हूं मैं
पश्चाताप की आग में निखर गया हूं मैं
मंजिल की तलाश में शिद्दत करने निकल पड़ा हूं मैं
कांच के टुकड़ों सा बिखर चुका हूं मैं
फिर भी जिंदगी जिए जा रहा हूं मैं
फिर भी जिंदगी जिए जा रहा हूं मैं
©alter
#CrescentMoon