लगता है आप तो कांटों से घबराए हैं।
अरे,हमने तो यहां फूलों से भी ज़ख्म खाए हैं।
है अगर आज भी हमारे चेहरों पर मुस्कान ज़रा सी
उसमें हमारे चाहने वाले सज्जनों की ही दुयाऐं हैं।
निकाला नहीं है अभी सब कुछ बाहर,
हमने,अभी भी कुछ राज़ 'परवीन',
अपने अन्दर छुपाए हैं, दबाए हैं।
पाताल क्या, आकाश क्या,
कहीं भी भरुं उड़ान, सब मेरी ही दिशाएं हैं।
कैसे करना है हमें अपना हर काम
उसके लिए हमारी अपनी ही अदाएं हैं.....✍️
...........@परवीन बलियाला😎
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