किस्मत को जो था मंजूर
चाहत दिल को उसकी न रही
लबों की खामोशी गहरी
तोड़ने की जरूरत ना रही
ख्वाब टूटा दिल भी टूटा
जोड़ने की तकल्लुफ न रही
वो जिसे अपना माना था
उससे कोई खुशी न रही
रात का अंधियारा डरावना
उसमे अनोखी बात न रही
जिस सुकून की तलाश थी मुझे
उसके आने की अब आस न रही
उसके आने की अब कोई आस न रही।।
©Priya Singh
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