ना जनता सुधरती है ना नेता सुधरते हैं, इसीलिये आज़ा | हिंदी कविता

"ना जनता सुधरती है ना नेता सुधरते हैं, इसीलिये आज़ादी में गुलामी से दिन दिखते हैं ! जनता वोट बेच के राजी है नेता वोट खरीद के, यानि दोनों मिलकर आज़ादी की अस्मत से खेलते है !! जान निछावर कर गये जो, मुल्क आज़ाद कराने को, सोच रहे होंगे, दी कुर्बानियां, क्या आज़ादी बेच खाने को ? हम निर्लज्जता ओढ़ बिछा फिरंगियों के चंगुल में हैं, बेहूदा पोशाक, दिन रात मोबाइल, सब है हमें बरगलाने को !! फार्मा ने अपना जाल बिछा हमारे घरेलू इलाज से दूर किया, कई गुना मुनाफ़े वाली दवाइयों के सेवन को मजबूर किया ! कैंसर जैसे रोग घर घर में पहुंचाने बिछाया प्लास्टिक का जाल, हज़ारों के इंजेक्शन का दाम करोड़ों में वसूल किया !! शेयर बाजार हो या हो हमारी फ़िल्में, पाश्चात्य अनुकरण से कोई अछूता नहीं इनमें ! युवाओं की नैतिकता पर भी दिन रात प्रहार, आज़ादी के प्रहरी बनने कोई तैयार नहीं इनमें !! नेता लूटे, शिक्षा लूटे, लूटे धर्मगुरु और अस्पताल, घर घर के बजट का बिगड़ता जा रहा सुर ताल ! अदालतों को भी किया आम पहुँच से बाहर, अपराधियों की है नेताओं संग कदमताल !! हे राम... - आवेश हिंदुस्तानी 6.10.2024 ©Ashok Mangal"

 ना जनता सुधरती है ना नेता सुधरते हैं,
इसीलिये आज़ादी में गुलामी से दिन दिखते हैं !
जनता वोट बेच के राजी है नेता वोट खरीद के,
यानि दोनों मिलकर आज़ादी की अस्मत से खेलते है !!

जान निछावर कर गये जो, मुल्क आज़ाद कराने को,
सोच रहे होंगे, दी कुर्बानियां, क्या आज़ादी बेच खाने को ?
हम निर्लज्जता ओढ़ बिछा फिरंगियों के चंगुल में हैं,
बेहूदा पोशाक, दिन रात मोबाइल, सब है हमें बरगलाने को !!

फार्मा ने अपना जाल बिछा हमारे घरेलू इलाज से दूर किया,
कई गुना मुनाफ़े वाली दवाइयों के सेवन को मजबूर किया !
कैंसर जैसे रोग घर घर में पहुंचाने बिछाया प्लास्टिक का जाल,
हज़ारों के इंजेक्शन का दाम करोड़ों में वसूल किया !!

शेयर बाजार हो या हो हमारी फ़िल्में,
पाश्चात्य अनुकरण से कोई अछूता नहीं इनमें !
युवाओं की नैतिकता पर भी दिन रात प्रहार,
आज़ादी के प्रहरी बनने कोई तैयार नहीं इनमें !!

नेता लूटे, शिक्षा लूटे, लूटे धर्मगुरु और अस्पताल,
घर घर के बजट का बिगड़ता जा रहा सुर ताल !
अदालतों को भी किया आम पहुँच से बाहर,
अपराधियों की है नेताओं संग कदमताल !!

हे राम...

- आवेश हिंदुस्तानी 6.10.2024

©Ashok Mangal

ना जनता सुधरती है ना नेता सुधरते हैं, इसीलिये आज़ादी में गुलामी से दिन दिखते हैं ! जनता वोट बेच के राजी है नेता वोट खरीद के, यानि दोनों मिलकर आज़ादी की अस्मत से खेलते है !! जान निछावर कर गये जो, मुल्क आज़ाद कराने को, सोच रहे होंगे, दी कुर्बानियां, क्या आज़ादी बेच खाने को ? हम निर्लज्जता ओढ़ बिछा फिरंगियों के चंगुल में हैं, बेहूदा पोशाक, दिन रात मोबाइल, सब है हमें बरगलाने को !! फार्मा ने अपना जाल बिछा हमारे घरेलू इलाज से दूर किया, कई गुना मुनाफ़े वाली दवाइयों के सेवन को मजबूर किया ! कैंसर जैसे रोग घर घर में पहुंचाने बिछाया प्लास्टिक का जाल, हज़ारों के इंजेक्शन का दाम करोड़ों में वसूल किया !! शेयर बाजार हो या हो हमारी फ़िल्में, पाश्चात्य अनुकरण से कोई अछूता नहीं इनमें ! युवाओं की नैतिकता पर भी दिन रात प्रहार, आज़ादी के प्रहरी बनने कोई तैयार नहीं इनमें !! नेता लूटे, शिक्षा लूटे, लूटे धर्मगुरु और अस्पताल, घर घर के बजट का बिगड़ता जा रहा सुर ताल ! अदालतों को भी किया आम पहुँच से बाहर, अपराधियों की है नेताओं संग कदमताल !! हे राम... - आवेश हिंदुस्तानी 6.10.2024 ©Ashok Mangal

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#AaveshVaani
#JanMannKiBaat

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