जितना सागर गहरा, यारा उसमें उतने राज
जो समझ इस बात को, उठ जाये वो समाज।
संत सोचते गहराई से, कर हर बात पर मनन
मन को पोषण देना था, यारा पोषण पाये तन
गहरा जिसने सोचा, उसने पाया मुक्ति द्वार
मन जागृत न हुआ, यारा गये तीर्थ बार बार।
सोचो जो गहराई से, पाओ मिथ्या सब जगत
इन्द्रियां हावी रहे, यारा जीव रहे सदा भोगरत
©Kamlesh Kandpal
#LookingDeep