यदि जाहिर ही कर दूं वह दर्द काहे को, जो समझे ना खा

"यदि जाहिर ही कर दूं वह दर्द काहे को, जो समझे ना खामोशी वह हम दर्द काहे को। ©Ziyaul Haque"

 यदि जाहिर ही कर दूं वह दर्द काहे को,
जो समझे ना खामोशी वह हम दर्द काहे को।

©Ziyaul Haque

यदि जाहिर ही कर दूं वह दर्द काहे को, जो समझे ना खामोशी वह हम दर्द काहे को। ©Ziyaul Haque

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