White नर्क का स्थाई निवासी वो कीड़ा गलती से जन्न | हिंदी कविता

"White नर्क का स्थाई निवासी वो कीड़ा गलती से जन्नत जा पंहुचा हो न हो वो कीड़ा कही रास्ता ही न भटक गया हो खंड खंड होकर जी रहा हैँ आदमी. हो न हो वो आदमी कहीं जीने का मकसद ही न भूल गया हो ©Parasram Arora"

 White नर्क का स्थाई निवासी  वो कीड़ा 
गलती से  जन्नत   जा पंहुचा 

 हो न हो वो कीड़ा कही रास्ता 
ही न भटक  गया हो

 
खंड  खंड होकर जी रहा हैँ आदमी.

हो न हो वो आदमी कहीं जीने का
 मकसद ही  न भूल गया हो

©Parasram Arora

White नर्क का स्थाई निवासी वो कीड़ा गलती से जन्नत जा पंहुचा हो न हो वो कीड़ा कही रास्ता ही न भटक गया हो खंड खंड होकर जी रहा हैँ आदमी. हो न हो वो आदमी कहीं जीने का मकसद ही न भूल गया हो ©Parasram Arora


मकसद

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