परिंदे आँखें मूंद देख रहे हैं कमलेश उजड़ते चमन को | हिंदी कविता

"परिंदे आँखें मूंद देख रहे हैं कमलेश उजड़ते चमन को इतनी तबाही होने के बाद भी इंसान समझा न पाया अपने मन को ©Kamlesh Kandpal"

 परिंदे आँखें मूंद देख रहे हैं 
कमलेश उजड़ते चमन को 
इतनी तबाही होने के बाद भी 
इंसान समझा न पाया अपने मन को

©Kamlesh Kandpal

परिंदे आँखें मूंद देख रहे हैं कमलेश उजड़ते चमन को इतनी तबाही होने के बाद भी इंसान समझा न पाया अपने मन को ©Kamlesh Kandpal

#Mn

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